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प्रिंसिपल डॉ जगरूप सिंह ने कॉलेज की स्थापना के सत्तर वर्ष पूरे होने पर दी बधाई
टाकिंग पंजाब
जालंधर। मेहर चन्द पॉलीटेक्निक कॉलेज, जालंधर के प्लैटिनम जुबली वर्ष के दौरान पुराने विद्यार्थी आज भी कॉलेज में बिताए हुए दिन याद करके भावुक हो उठते हैं। प्रिंसिपल डॉ जगरूप सिंह ने कॉलेज की स्थापना के सत्तर वर्ष पूरे होने पर सबको बधाई व शुभकामनाएं दी और साथ ही कॉलेज से जुड़ी उन पुरानी यादों को श्रृंखलाबद्ध कर के स्मारिका के रूप में छापने का बीड़ा भी उठाया। इस दौरान कालेज के एलुमनाईचन्दर मोहन सेखड़ी ने कालेज की यादों को याद कर कहा कि मैनें 1982 से 1985 में मेहर चन्द पॉलीटैक्निक से सिविल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा किया और रेल कोच फैक्टरी, कपूरथला से जेई में अपने करियर की शुरुआत की। फिर एक्सईएन, डिप्टी चीफ़ इंजीनियर होते हुए 29 जनवरी 2024 को भुवनेश्वर में चीफ इंजीनियर (रेलवे) बना। अनेक अवार्ड जीते और आज भी अपनी प्राप्तियों का सेहरा मेहर चन्द पॉलीटैक्निक को देता हूं। प्रेम दयाल शर्मा ने कहा कि मैनें 1963 में मेहर चन्द पॉलीटेक्निक कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा किया। क्रिकेट और बैडमिंटन के कैप्टेन रहे प्रताप सिंह कैरों से बैस्ट ऑल राउंडर स्टूडेंट का अवार्ड मिला। आर्डिनेंस फैक्ट्री, भारतीय रेलवे में काम किया। मेहर चन्द पॉलीटेक्निक का नाम सुन कर उनकी आँखों में आंसू आ जाते हैं। नरिन्दर शर्मा ने कहा कि1966 में मेहर चन्द पॉलीटेक्निक से मैकेनिकल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा किया। इसी कॉलेज में लेक्चरर रहे। 1976 में ऐसडीओ बन कर बिजली बोर्ड में चले गए और 2004 ऐस.ई. बन कर रिटायर हुए। तलवाड़ा का हाइड्रो पॉवर प्लांट इन्हीं की देख रेख में बना। जब भी मेहर चन्द पॉलीटेक्निक के सामने से गुज़रते हैं, श्रद्धा से सिर झुक जाता है। वहीं, मनोज कुमार ने कहा कि 1985 में मेहर चन्द पॉलीटेक्निक से मैकेनिकल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा किया फिर सफलता की सीढ़ियां चढ़ते ही गए। ऑस्ट्रेलिया से मास्टर्स की। फिर आईबीएम, फ़िलिप्स, लेनोवो, एप्पल जैसी कम्पनियों काम किया और अब एशिया, यूऐसए और यूरोप में, हालसिम कम्पनी से जुड़े है स्विट्ज़रलैंड में रह रहे हैं। वे आज भी अपनी मज़बूत नींव का श्रेय मेहर चन्द पॉलीटेक्निक को देते हैं। वासुदेव शर्मा ने कालेज को याद करते हुए कहा कि 1964 में सिविल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा मेहर चन्द पॉलीटैक्निक से किया। पीडब्ल्यूडीबी एंड आर. में ओवरसियर बने और ऐसडीई बन कर रिटायर हुए। इसके उपरांत पीटीयू में एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के तौर पर काम किया। पूरे कार्यकाल में यूनियन लीडर के रूप में कर्मचारियों की मांगों के लिए संघर्ष किया। आज 80 वर्ष से ऊपर आयु होने पर भी संघर्ष जारी है। कॉलेज को अपनी माँ का दर्जा देते हैं।