
कारगिल युद्द के पन्नों पर र्स्वण अक्षरों में दर्ज है कैप्टन विक्रम बत्रा का नाम

news-portal domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in C:\inetpub\vhosts\cavarunsharma.in\talkingpunjab.in\wp-includes\functions.php on line 6131India No.1 News Portal

इस दिन भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच साल 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था, जो लगभग 60 दिनों तक चला था। 26 जुलाई के दिन उसका अंत हुआ और इसमें भारत विजयी हुआ। कारगिल विजय दिवस युद्ध में बलिदान हुए भारतीय जवानों के सम्मान में यह दिवस मनाया जाता है। इस युद्द में विजय पताका फहराने में कई वीर योद्दाओं ने अपना बलिदान दिया। इन सभी के बलिदान को भारत का कोई भी नागरिक भुला नहीं सकता है, लेकिन इन योद्दाओं में एक ऐसा योद्दा था, जिसका नाम सदियों तक लिया जाऐगा। जी हां.. हम बात कर रहे हैं हिमाचल के लाल परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा की।
इस युद्ध में परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा का भी बड़ा योगदान है। दुश्मन भी इनके नाम से कांपते थे। कैप्टन विक्रम बत्रा देश के लिए दुश्मनों से लड़ते हुए बलिदान हो गए थे। उनकी बहादुरी देश के लिए मिसाल है। दुश्मनों को धूल चटाने वाले विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हुआ था। कांगड़ा जिले के पालमपुर में घुग्गर गांव में जन्मे विक्रम को युद्ध में दुश्मन भी शेरशाह के नाम से जानते थे। विक्रम बत्रा को देश सेवा करने का इतना जनून था कि उन्होंने हांगकांग में अच्छे वेतन पर मिल रही मर्चेन्ट नेवी की नौकरी को ठुकरा कर देश सेवा के लिए भारतीय सेना को चुना।
सेना में भर्ती होने के बाद उन्होँने कई बहादुरी के कार्य किए, जिनमें 20 जून 1999 को सुबह 3.30 बजे कैप्टन बत्रा का अपने साथियों के साथ श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण चोटी 5140 फतह करना था। जीत के बाद बत्रा ने इस चोटी से संदेश दिया था कि ‘यह दिल मांगे मोर’। बाद में यह पूरे देश में लोकप्रिय हो गया। अदम्य वीरता और पराक्रम के लिए कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल वाय.के. जोशी ने विक्रम को ‘शेरशाह’ के उपनाम से नवाजा था। हालांकि कारगिल युद्ध को सालों बीत गए हैं, लेकिन आज भी इस जांबाज सिपाही का नाम बड़े गर्व के साथ लिया जाता है।
इस जांबाज सिपाही की कहानियां नौजवानों के दिलों में जोश भर देती है। आज भी जब कोई युवा उनके किस्से सुनता है तो हर किसी के दिल से एक ही आवाज निकलती है कि वह भी कैप्टन बत्रा की तरह ही देश की सेवा करना चाहते हैं। कारगिल युद्द के हीरों कैप्टन विक्रम बतरा के परिजनों को अभी इस बात का मलाल है कि उनके बेटे के बलिदान को किसी पाठ्यक्रम में नहीं जोड़ा गया। उनके पिता जीएल बतरा ने कहा कि इसके लिए उन्होंने सरकारों से पत्राचार भी किया है। लेकिन अभी तक इस मामले में किसी ने कोई कदम नहीं उठाया है। उनके पिता की मानें तो उनके बेटे के बलिदान को किसी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।

Website Design and Developed by OJSS IT Consultancy, +91 7889260252,www.ojssindia.in