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अमेरिका में बसे भारतीयों की माने तो इससे छोटी व मध्यम कंपनियां होंगी ज्यादा प्रभावित
अमेरिका में पढ़ाई और नौकरी के लिए एजुकेशन लोन लेने वाले 30-40 प्रतिशत भारतीय छात्रों पर भी बढ सकता है डिफॉल्ट का खतरा
टाकिंग पंजाब
नईं दिल्ली। एच-1बी वीजा भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिका में काम करने और ‘अमेरिकनड्रीम’ हासिल करने का महत्वपूर्ण रास्ता है, खासकर तकनीकी, इंजीनियरिंग और स्वास्थ्य क्षेत्र में जाने वालों के लिए। अब अमेरिकन प्रेसिडेंट ट्रंप ने 21 सितंबर 2025 से इस वीज़ा पर 1 लाख डॉलर की फीस लगा दी है। यूएसए में रहने वाले भारतीयों का कहना है कि इतनी भारी-भरकम फीस से भारतीयों और अमेरिका को नुकसान होंगे।
दरअसल प्रेसिडेंट ट्रंप की वीज़ा फीस एक लाख डॉलर करने से अमेरिका में आईटी, हेल्थ, एजुकेशन सेक्टर में जाने के इच्छुक मिडिल क्लास के पैरों तले ज़मीन खिसक गई है। आपकों बता दें कि 21 सितंबर से पहले एच-1बी की फीस 2 हज़ार डॉलर से 5 हज़ार डॉलर होती थी। अब वही वीज़ा एक लाख डॉलर में मिलेगा। यह हज़ारों लोगों के ख्वाब तोड़ने जैसा है। वीजा फीस 2-5 लाख रुपए से लगभग 88 लाख रुपए होने का बोझ नई कंपनियों के अलावा टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो जैसी नामी कंपनियों पर भी पड़ेगा जो एच-1बी वीजा पर निर्भर हैं। वीजा फीस बढ़ने से उनकी लागत बढ़ेगी व छोटी और मध्यम आकार की कंपनियां इससे ज्यादा प्रभावित हो सकती हैं। इसके अलावा, लगभग 30-40 प्रतिशत भारतीय छात्र जो अमेरिका में पढ़ाई और नौकरी के लिए एजुकेशन लोन लेते हैं, उन पर वीजा फीस बढ़ने से डिफॉल्ट का खतरा बढ़ सकता है। इस फीस के बढने के बारे में यूएस में रहने वाले भारतीयों का कहना है कि एच-1बी शुल्क फेल होगा। जल्द ही मुकदमे दर्ज होंगे व अदालतें इसे खारिज कर सकती हैं। क्योंकि यह प्रशासनिक प्रक्रिया अधिनियम के अनुरूप नहीं है, जिसमें सार्वजनिक सूचना और फेडरल रजिस्टर में टिप्पणी की जरूरत होती है। यह शुल्क स्टार्टअप्स को नुकसान पहुंचाएगा, नए विचारों को रोकेगा व भारत जैसे देशों में आउटसोर्सिंग बढ़ा सकता है। हालांकि वहां के लोगों का कहना है कि यह एच-1बी वीजा में धोखाधड़ी व अमेरिकी आप्रवासन कानूनों के दुरुपयोग पर अंकुश लगाएगा। यह संयुक्त राज्य अमेरिका में इनोवेशन और प्रोडक्टिविटी को बढ़ावा देगा क्योंकि उच्च योग्यता प्राप्त कामगारों को एच-1बी आवेदनों के लिए कई मौके मिलेंगे। हालांकि कुछ लोगो का कहना है कि एच-1बी वीजा महज एक कागज नहीं, यह नए आइडिया और नए लोगों को एकसाथ लाने का पुल है। यह हम जैसे भारतीयों के लिए दुनिया की सबसे बड़ा अर्थव्यवस्था में अपनी काबिलियत दिखाने का मौका है। आज यह पुल एक तंग गलियारे जैसा लग रहा है, जिसमें अनिश्चितता और भरोसे की कमी है। अगर एच-1बी प्रोग्राम में सही और निष्पक्ष तरीके से बदलाव हों तो हमें दिक्कत नहीं है। बशर्ते इसे ईमानदारी से लागू किया जाए, लेकिन चिंता तब होती है, जब सुधार निष्पक्षता की जगह बहिष्कार की ओर बढ़ते हैं। सिस्टम ऐसा नहीं होना चाहिए कि योग्य लोगों को मनमाने कोटे, पुराने ढांचे या लॉटरी जैसे अस्पष्ट तरीकों की वजह से मौके देने से रोक दे