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चीफ जस्टिस ने कहा, क्रिश्चियन अफसर ने अपने साथी सिख सैनिकों की आस्था का नहीं किया सम्मान, सेना सेक्युलर, यहां अनुशासन सर्वोपरि
टाकिंग पंजाब
नई दिल्ली। एक क्रिश्चियन आर्मी अफसर को गुरुद्वारा साहिब में जाने से इंकार करना मंहगा पड़ गया है। क्रिश्चियन आर्मी अफसर को इसका हर्जाना सेना से बर्खास्त होकर चुकाना पड़ा है। गुरुद्वारा साहिब जाने से मना करने वाले इस आर्मी आफसर को सेना ने बर्खास्त कर दिया था। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सैमुअल कमलेसन नाम इस क्रिश्चियन आर्मी अफसर को पहले तो फटकार लगाई ओर फिर इस अफसर को झगड़ालू व आर्मी के लिए मिसफिट करार दे दिया। चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने क्रिश्चियन अफसर को सेना की नौकरी से हटाने के फैसले का समर्थन किया।
चीफ जस्टिस कहा कि क्रिश्चियन अफसर ने अपने साथी सिख सैनिकों की आस्था का सम्मान नहीं किया। यह आचरण अनुशासनहीनता है। सेना जैसी संस्था में ऐसी हरकतें बर्दाश्त नहीं की जा सकतीं। सीजेआई ने कहा कि आप किस तरह का संदेश दे रहे हैं ? आपने सैनिकों की भावनाओं का सम्मान नहीं किया। आपको धार्मिक अहंकार इतना अधिक था कि आपने दूसरों की परवाह ही नहीं थी ? सुप्रीम कोर्ट से पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने भी मई में सेना के फैसला को सही ठहराया था। हाईकोर्ट ने माना था कि अफसर के व्यवहार से रेजीमेंट की एकजुटता, अनुशासन व सेक्युलर मूल्यों को नुकसान पहुंचा। कोर्ट ने सेना में ऐसे व्यवहार को युद्ध स्थितियों में नुकसानदेह बताया था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कमलेसन ने अपने सीनियर अफसरों के आदेश से ऊपर अपने धर्म को रखा। यह स्पष्ट रूप से अनुशासनहीनता है। दरअसल अफसर का तर्क था कि ईसाई धर्म गुरुद्वारा व मंदिर जाने की अनुमति नहीं देता है। अफसर सैमुअल कमलेसन की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि उन्हें सिर्फ इसलिए नौकरी से निकाला गया क्योंकि उन्होंने अपने पोस्टिंग वाले मंदिर के सबसे अंदर वाले हिस्से में जाने से मना कर दिया था। वकील ने कहा कि अफसर हर हफ्ते अपने सैनिकों के साथ मंदिर व गुरुद्वारे तक जाते थे, लेकिन पूजा, हवन या आरती के समय अंदर नहीं जाते थे, क्योंकि उनकी ईसाई धार्मिक मान्यता इसकी अनुमति नहीं देती। वकील का कहना था कि वह अनुशासित अफसर हैं और बाकी सब काम ठीक से करते हैं। उन्होंने सिर्फ इतना कहा था कि उन्हें किसी देवी-देवता की पूजा करवाने या अनुष्ठान करने के लिए मजबूर न किया जाए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो बड़ी बातें कही, उनमें यह था कि आप चाहे कितने ही अच्छे अफसर हों, लेकिन आप सेना में अनुशासन नहीं रख पाए, तो इसका मतलब है कि आप अपने ही सैनिकों की भावनाओं का सम्मान करने में असफल रहे। गुरुद्वारा साहिब सबसे अधिक सेक्युलर जगहों में से एक माना जाता है। जिस तरह वह व्यवहार कर रहे हैं, क्या यह दूसरे धर्मों का अपमान नहीं है ? आखिर क्या था पूरा मामला – अफसर सैमुअल कमलेसन का मामला मार्च 2017 से जुड़ा है, जब वह तीसरी कैवेलरी रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट बने। उनकी यूनिट में मंदिर और गुरुद्वारा था, जहां हर हफ्ते धार्मिक परेड होती थी। वह अपने सैनिकों के साथ वहां तक जाते थे, लेकिन अंदर वाले हिस्से में पूजा दौरान जाने से मना करते थे। उनका कहना था कि उनकी ईसाई मान्यता इसकी अनुमति नहीं देती और उनसे किसी देवी-देवता की पूजा करवाना गलत है। अफसर का आरोप था कि एक कमांडेंट लगातार उन पर दबाव डालता था और इसी वजह से मामला बढ़ा। दूसरी ओर सेना ने कहा कि उन्होंने कई बार समझाने के बाद भी रेजिमेंटल परेड में पूरी तरह हिस्सा नहीं लिया, जो स्पष्ट रूप से अनुशासनहीनता है। लंबे समय तक चली जांच और सुनवाई के बाद उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 25 सिर्फ मूल धार्मिक प्रथाओं की रक्षा करता है, लेकिन हर भावना धर्म नहीं होती। सेना का अनुशासन सर्वोपरि है। लीडर्स तो उदाहरण पेश करते हैं। एक कमांडिंग अफसर होने के नाते उनसे उम्मीद थी कि वह अपने सैनिकों की एकजुटता व मनोबल को प्राथमिकता देंगे।