क्या दिल्ली में आप की हार भारत में ‘वैकल्पिक राजनीति’ के अंत का है संकेत ?

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जानकारों की माने तो भ्रष्टाचार के आरोपों, मुख्यमंत्री आवास पर अत्यधिक खर्च, कथित शराब घोटाले के आरोपों ने पहुंचाया नुक्सान

आप नेता गोपाल राए बोले, सत्ता, अधिकार व पैसे का हुआ दुरुपयोग.. इससे मतदाताओं में डर व लालच दोनों हुए पैदा

टाकिंग पंजाब

नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी की दिल्ली में हुई करारी हार के बाद पार्टी के अस्त्तिव को लेकर कईं तरह के सवाल उठने शुरू हो गए हैं। कुछ राजनीतिकार तो आप की इस हार को भारत में ‘वैकल्पिक राजनीति’ के अंत का संकेत भी कह रहे है। हाल में अपने एक लेख में प्रोफेसर कैलाश जी ने भी इस सवाल को उठाया था। दरअसल आम आदमी पार्टी ने 2013 में दिल्ली की राजनीति में शानदार प्रवेश किया। पार्टी ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की लहर पर सवार होकर खुद को एक राजनीति विरोधी ताकत के रूप में स्थापित करके दिल्ली के मध्यम वर्ग से जुड़ाव बनाया।   सत्ता में आने के बाद पार्टी ने स्कूली शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी की आपूर्ति और महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा जैसी कल्याणकारी पहलों के दम पर एक मजबूत समर्थन आधार बनाया। अब लगभग एक दशक तक सत्ता में रहने के बाद दिल्ली के लोगों की तरफ से दिल्ली की सत्ता से बाहर कर दिया गया है। आखिरकार 26 साल के अंतराल के बाद दिल्ली में विधानसभा स्तर पर भाजपा फिर से सत्ता में है। भाजपा ने 48 सीटें जीतीं, जबकि आप की सीट हिस्सेदारी 62 से घटकर 22 सीटों पर आ गई। विश्लेषकों ने इसकी हार के लिए सत्ता विरोधी लहर व आप की शासन विफलता को जिम्मेदार ठहराया है।  उन्होंने केजरीवाल के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों, मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास पर उनके अत्यधिक खर्च, कथित शराब घोटाले आदि को भी जिम्मेदार ठहराया है। हालांकि कुछ बुनियादी सवाल अभी भी बने हुए हैं। क्या आप इसलिए हारी क्योंकि भाजपा ने कल्याण के मामले में उससे बेहतर वादे किए ? क्या आप इस लिए हारी क्योंकि उसे अपने प्रतिद्वंद्वियों से ज़्यादा भ्रष्ट माना गया या इसलिए कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में उसकी मौजूदगी के कारण उसे ज़्यादा ईमानदारी का दर्जा दिया गया ? क्या आप को जीवित रहने के लिए वाकई एक वैचारिक आधार की ज़रूरत है, जैसा कि कुछ लोग तर्क दे रहे हैं ? इस नतीजे का उस ‘वैकल्पिक राजनीति’ के लिए क्या मतलब है जिसका वादा आप ने किया था ?   उधर दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के नेता गोपाल राय का कहना है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार चौंकाने वाली है, क्योंकि न केवल उनकी पार्टी बल्कि पूरे शहर का मानना ​​था कि सीटें भले ही कम हो जाएं, लेकिन पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल सरकार बनाने के लिए वापस आएंगे। पार्टी के 10 साल के शासन को समाप्त करते हुए भाजपा ने 43.23 लाख वोट (45.6%) के साथ 48 सीटें हासिल कीं और आप को 49.74 लाख वोट (43.6%) के साथ 22 सीटें मिलीं। साल 2020 में भाजपा को 35.75 लाख वोट मिले थे और आप को 41.33 लाख वोट मिले थे। उन्होंने कहा कि आखिरी समय में चीजें बदल गईं। सत्ता, अधिकार और पैसे का बहुत दुरुपयोग हुआ। इससे मतदाताओं में डर व लालच दोनों पैदा हो गए।   इन मुद्दों के खिलाफ दर्ज की गई शिकायतों पर कोई जरूरी कार्रवाई नहीं की गई। राय ने यह भी कहा कि चूंकि दिल्ली में लगातार तीन बार विधानसभा चुनाव जीते हैं, इसलिए इस बार सीटों में कमी आने की उम्मीद थी। उन्होंने कहा कि लेकिन हम सरकार बना रहे हैं, यह फीडबैक से तय था। राय ने कहा कि नतीजों के बाद के विश्लेषण में उन्हें पता चला है कि मध्यम वर्ग, जो विधानसभा में आप और लोकसभा में भाजपा को वोट देता था, केंद्रीय बजट में कर छूट की पेशकश के बाद वापस भाजपा की ओर चला गया। राय ने कहा कि हम आने वाले दिनों में सीटवार विस्तृत विश्लेषण करेंगे। उन्होंने स्पष्ट किया कि भाजपा द्वारा जीती गई सीटों के संदर्भ में नुकसान बड़ा लग सकता है, लेकिन मतदाता शेयर “हमारी महान लड़ाई” को दर्शाता है।

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