मुंबई। महाराष्ट्र में जिस तरह के हालात चल रहे हैं, उससे लग रहा है कि उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री की कुर्सी खो सकते हैं। एकनाथ शिंदे के हक में विधायकों व सांसदों की गिणती बढती ही जा रही है। हालांकि उद्धव ठाकरे ने सरकार बचाने के लिए वो दांव खेला है, जो लगभग 30 साल पहले 1992 में उनके पिता बाला साहेब ठाकरे ने चला था। बाला साहेब के इस दाव ने उस समय शिवसेना के अस्तित्व पर आए संकट को टाल दिया था, लेकिन उद्धव ठाकरे के लिए इस संकट को टाल पाना मुश्किल नजर आ रहा है। हालांकि बुधवार को उन्होंने फेसबुक लाइव होकर वह तेवर दिखाए, जो 1992 में उनके पिता बाला साहेब ठाकरे ने दिखाए थे। उद्धव ने साफ कहा कि उनके पार्टी पहले है और मुख्यमंत्री पद का मोह उन्हें नहीं है।
दरअसल 1992 में बाला साहेब ठाकरे के ही एक साथी माधव देशपांडे ने पार्टी प्रमुख पर कई आरोप लगाए थे। उन्होंने उद्धव ठाकरे व राज ठाकरे की पार्टी में दखलंदाजी को बड़ा मुद्दा बनाया था। ऐसे में बाला साहेब ने शिवसेना के मुखपत्र सामना में एक लेख लिखा था। इस लेख में बाला साहेब ने कहा था कि अगर कोई भी शिव सैनिक उनके सामने आकर यह बात कहता है कि उसने ठाकरे परिवार के कारण पार्टी छोड़ी है, तो वह उसी वक्त अध्यक्ष पद छोड़ देंगे। इसके साथ ही उनका पूरा परिवार शिवसेना से हमेशा के लिए अलग हो जाएगा।
सामना में बाला साहेब ठाकरे का यह लेख पढ़ने के बाद लाखों शिवसेना कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए थे। कुछ कार्यकर्ता अपनी जान देने की धमकी भी देने लगे थे। इसके बाद तो शिवसेना के सभी अधिकारी बाला साहेब को मनाने में जुट गए। माधव देशपांडे के लगाए आरोपों को भी सभी ने दरकिनार कर दिया। जल्द ही ये मामला शांत हो गया और इसके बाद बाला साहेब ठाकरे और उनके परिवार पर कभी किसी ने सवाल नहीं उठाया। इस बार शिवसेना व महाअघाड़ी सरकार पर आए संकट के बाद भी उद्धव ठाकरे ने वहीं कदम उठाया है जो कि किसी समय बाला साहेब ठाकरे ने उठाया था, लेकिन आज के हालात को देखते हुए यह कह पाना बड़ा मुश्किल होगा कि उद्धव ठाकरे के इन शब्दों का एकनाथ शिंदे व बागी विधायकों पर असर होगा या नहीं। महाराष्ट्र की राजनीति आगे क्या करवट लेती है, यह तो कुछ समय में साफ हो जाऐगा, लेकिन लग रहा है कि उद्दव ठाकरे के हाथ से महाराष्ट्र की सत्ता जाती दिख रही है।