करीब 189 सालों से रावण की पूजा कर अपनी परपंरा निभा रहे हैं इस गांव के लोग
टाकिंग पंजाब
लुधियाना। बुराई पर अच्छाई का प्रतीक दशहरा पर्व समस्त भारत में धूम-धाम व श्रद्दा के साथ मनाया जाता है। इस दिन रावण, कुंभकरण व मेघनाथ के पुतलों को फूंक कर बुराई पर अच्छाई की विजय का जश्न मनाया जाता है, लेकिन पंजाब में एक ऐसा गांव भी है, जहां दशहरे के दिन रावण को जलाया नहीं जाता बल्कि उसकी पूजा की जाती है।
लुधियाना जिले के पायल कस्बे में स्थित इस के लोग करीब 189 साल पहले से रावण की पूजा की अपनी परपंरा निभा रहे हैं। इस गांव में रावण की पूजा को पुत्र प्राप्ती के तौर पर भी किया जाता है। गांव के लोगों का कहना है कि लोग यहां पुत्र रत्न की प्राप्ति की मन्नत मांगने आते हैं। जब उनकी मन्नत पूरी हो जाती है तो दशहरे के दिन यहां शराब की बोतल चढ़ाते हैं।
इसके अलावा शराब की बोतल से छींटा दे बकरे के कान पर चीरा लगा कर उसका रक्त रावण को लगाया जाता है। बकरे के कान से थोड़ा सा खून लेकर रावण के बुत का तिलक कर दिया जाता है। गांव वालों का कहना है कि जिस मिस्त्री ने रावण का यह बुत बनाया था उस मिस्त्री के सपने में रावण आने लगे थे। मिस्त्री डरा व सहमा मंदिर में आया व उसने बताया कि रावण उसके सपने में आ रहे है।
मिस्त्री का कहना था कि रावण उसे इसलिए तंग करे रहे क्योंकि जब उसने रावण का बुत बनाया था तो वह पैरों में जूते लिए रावण के सिर पर जा चढ़ा था, जिस कारण रावण उस पर क्रोधित थे। मिस्त्री ने रावण के बुत के आगे क्षमा याचना मांगी फिर कही जाकर रावण ने उसका पीछा छोड़ा। ऐसी ओर भी कईं कथाएं हैं, जिसके कारण इस गांव के लोग रावण को जलाने की बजाए उसकी पूजा करते हैं।