पांच जजों की पीठ द्वारा सुनाए गए इस फैसले में एक जज ने जताई असहमति..न्यायमूर्ति बीवी नागरथना ने नोटबंदी को बताया गैरकानूनी।
टाकिंग पंजाब
नई दिल्ली। मोदी सरकार का देश में किया गया सबसे बड़ा एक्शन था नोटबंदी, जिसके बाद सरकार पर कई तरह की आरोप लगे थे। मोदी सरकार ने जब 2016 में नोटबंदी करने का फैसला लिया तो इस फैसले की खिलाफ कई क़ानूनी याचिकाए भी दाखिल की गईं. इन याचिकाओं पर फैंसला सुनते हुए माननीय अदालत ने सरकार को आज क्लीन चिट दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सही हुए कहा कि सरकार ने आरबीआई से गहन चर्चा के बाद ही यह फैसला लिया है। इस बीच पांच जजों की पीठ द्वारा सुनाए गए इस फैसले में एक जज ने असहमति जताई है। न्यायमूर्ति बी वी नागरथना ने नोटबंदी को गैरकानूनी बताया। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने नोटबंदी के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई दौरान अपना पक्ष रखते हुए कहा कि केंद्र सरकार का उद्देश्य अच्छा हो सकता है, लेकिन फैसले के लिए प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि 500 व 1000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण गैरकानूनी था। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि मेरा मानना है कि 8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना गैरकानूनी है। इन परिस्थितियों में 500 रुपए और 1000 रुपए के सभी नोटों का विमुद्रीकरण गलत है।500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों की पूरी शृंखला को एक कानून के जरिए खत्म किया जाना चाहिए न कि एक राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने जोर देकर कहा कि वह इस कार्रवाई के उद्देश्यों पर सवाल नहीं उठा रही हैं, लेकिन 2016 में हुई कार्रवाई के बाद से केवल कानूनी दष्टिकोण व यथास्थिति को बहाल नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा स्वतंत्र रूप से अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया गया व पूरी कवायद 24 घंटे में कर दी गई। उन्होंने कहा कि यह आवश्यक है कि संसद, जिसमें देश के लोगों के प्रतिनिधि शामिल हैं, इस मामले पर चर्चा करे व इसके बाद मामले को मंजूरी दे। उन्होंने कहा कि प्रस्ताव केंद्र से उत्पन्न हुआ था, जबकि आरबीआई की राय मांगी गई थी। आरबीआई द्वारा दी गई ऐसी राय को आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत सिफारिश के रूप में नहीं माना जा सकता है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि संसद को अक्सर लघु रूप में एक राष्ट्र के रूप में संदर्भित किया जाता है। यह लोकतंत्र का आधार है। संसद लोकतंत्र का केंद्र है, ऐसे महत्वपूर्ण मामले में इसे अलग नहीं छोड़ा जा सकता है। आपको बता दें कि सरकार की तरफ से आनन-फानन में सुनाए गए इस फैसले के खिलाफ देश के अलग-अलग हाईकोर्ट्स में कुल 58 याचिकाएं दाखिल हुई थीं। इन याचिकाओं में कहा गया था कि सरकार ने RBI कानून 1934 की धारा 26(2) का इस्तेमाल करने में गलती की है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी की सुनवाई एकसाथ करने का आदेश दिया। इन याचिकाओं में कहा गया था कि सरकार को करेंसी रद्द करने का अधिकार नही है। याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 26 (2) किसी विशेष मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों को पूरी तरह से रद्द करने के लिए सरकार को अधिकृत नहीं करती है। यह केंद्र को एक खास सीरीज के करेंसी नोटों को रद्द करने का अधिकार देती है, न कि संपूर्ण करेंसी नोटों को रद्द करने का।