मानव के उद्गमन ने पृथ्वी को यौवन में ही पहुंचा दिया वृद्धावस्था में …

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अर्थ दिवस पर विशेष…

   …  हमारी धरती पर समय पर आने वाली आपदाओ ने जहाँ मनुष्य जीवन को प्रभावित किया है, वहीं धरती को भी हिला कर रख दिया है। अगर हम धरती और मानवता के इतिहास का गहन अधयन करें तो धरती अपने करोड़ों वर्ष के जन्म के बाद भी अपनी पूरी जवानी में नहीं आ पाई थी। मात्र 1300 वर्ष पहले पृथ्वी का जीवन शुरू ही हुआ था कि इस पर मानव का उद्गगमन हो गया। मानव पृथ्वी के ऊपर जन्मे सब प्राणियों में ज्यादा दिमाग वाला था।   पृथ्वी को करोड़ों सालों बाद जवान होना था। ब्रह्मा द्वारा रचित अदिति यानि पृथ्वी को‌ अभी यानि वर्तमान में यौवन जीना था, लेकिन मानव के उद्गगमन ने पृथ्वी को यौवन में ही वृद्धावस्था में पहुंचा दिया है। मनुष्य ने फेफड़ों को ऑक्सीजन देने वाले पेड़ों के क्षेत्र को अपनी मानव बस्तियां बसाने के लिये नष्ट कर दिया। वातावरण व वर्षा चक्र को पृथ्वी के अनुकूल बनाने वाले पहाडों को मशीनों से समतल कर दिया। समुद्र जो हमें वर्षा के चक्र देते हैं, प्रदूषित कर दिया।    इसका परिणाम यह देखने को मिल रहा है कि ग्लेशियर मृत हो रहे हैं। नदियाँ ‌मर रही हैं व लुप्त हो रही हैं। वन क्षेत्र सिमट गये हैं, धरती के फेफड़े रोगग्रस्त हो गये हैं। यह सब पिछली कुछ शताब्दियों में हुआ है। यह कहना गलत नहीं होगा कि मनुष्य ने वो धरती बूढी कर दी जिसे अभी करोड़ों वर्ष तक यौवन पर रहना था। अगर अभी भी नहीं जागे तो शायद बहुत देर हो जायेगी। इसलिए समय रहते ही धरती व पानी को बचाने के प्रयास करना जरूरी हो गया है।

       लेखक :- राजेश शर्मा (वरुण मित्रा रेन वाटर सेलयुशन)

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