मोदी सरनेम केस में राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार व अन्य को जारी किया नोटिस…

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10 दिनों में देना होगा कोर्ट के नोटिस का जवाब… 4 अगस्त को होगी इस मामले में अगली सुनवाई

टाकिंग पंजाब

नई दिल्ली। मोदी सरनेम केस में राहुल गांधी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए गुजरात सरकार व अन्य को नोटिस जारी किया, जिसमें आपराधिक मानहानि मामले में उनकी सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया गया था। कोर्ट द्वारा जारी किए गए नोटिस को लेकर 10 दिनों में जवाब देना होगा जिसके बाद इस मामले में अगली सुनवाई 4 अगस्त को होगी। राहुल गांधी ने दायर की गई अपनी याचिका में कहा कि यदि सात जुलाई के आदेश पर रोक नहीं लगाई गई तो इससे स्वतंत्र भाषण, स्वतंत्र अभिव्यक्ति, स्वतंत्र विचार और स्वतंत्र वक्तव्य का दम घुट जाएगा, जो भारत के राजनीतिक माहौल और भविष्य के लिए गंभीर रूप से हानिकारक होगा। आपराधिक मानहानि के इस मामले में अप्रत्याशित रूप से अधिकतम दो साल की सजा दी गई, जो अपने आप में दुर्लभतम है।
      राहुल के वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि राहुल गांधी एक संसद सत्र में शामिल नहीं हो पाए और मानसून सत्र भी निकला जा रहा है। वायनाड लोकसभा क्षेत्र के लिए जल्द ही उपचुनाव भी घोषित किए जा सकते हैं। ऐसे में मामले में जल्दी सुनवाई की जानी चाहिए। इसके साथ ही राहुल गांधी के वकील ने राहुल के लिए अंतरिम राहत की मांग भी की। इस पर सुनवाई शुरू करने से पहले जस्टिस गवई ने कहा कि उनके पिता कांग्रेस से जुड़े हुए थे और भाई भी कांग्रेस से जुड़े हुए हैं। ऐसे में उनके सुनवाई करने से किसी पक्ष को कोई आपत्ति तो नहीं है। इस पर दोनों पक्षों ने कहा कि उन्हें इससे कोई दिक्कत नहीं है।
      बता दें कि साल 2019 में राहुल गांधी के मोदी सरनेम बयान को लेकर भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी उनके खिलाफ मानहानि की शिकायत दर्ज कराई थी। जिसके बाद इस मामले में सूरत की मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अदालत ने राहुल गांधी को आईपीसी की धाराओं 499 व 500 के तहत दोषी ठहराते हुए दो साल जेल की सजा सुनाई थी। इसके बाद उनकी सांसदी चली गई थी। सजा के खिलाफ राहुल गांधी सूरत सेशन कोर्ट और गुजरात हाईकोर्ट भी गए थे, लेकिन वहां से उन्हें राहत नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने 15 जुलाई को सजा पर रोक लगवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई। वहीं, पूर्णेश मोदी ने भी कोर्ट से अपील की थी कि उन्हें सुने बिना फैसला नहीं दिया जाए।

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