पलटी मारने में सदा ही माहिर रहे हैं नीतिश कुमार .. 23 साल के सियासी सफर में कईँ बार मारी पलटी

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साल 1994 से 2017 तक नीतीश ने कब कब मारी पलटी…कभी मोदी को कट्टर दुश्मन मानते थे नीतीश कुमार
टाकिंग पंजाब
पटना। देश में आए आपातकाल के दौर में बिहार के पटना यूनिवर्सिटी से बतौर छात्र लालू प्रसाद यादव के साथ ही राजनीति की शुरुआत करने वाले नीतीश कुमार एक बार फिर से इंडिया गठबंधन को झटका देकर भाजपा के साथ हो लिए हैं। गठबंधन की राजनीति के माहिर नीतीश कुमार ने अपनी चाल से कभी मोदी को चित किया था, लेकिन अब उन्होंने लालू को ऐसी पटखनी दी है कि वो अपने जख्म को सहला भी नहीं पा रहे हैं। नीतीश कुमार के 23 साल के राजनीतिक सफर की बात करें तो नीतीश कुमार कभी कांग्रेस व कभी भाजपा के साथ चलते रहे हैं।
    नीतीश के बीते 23 साल के सियासी सफर के लेखा-जोखा की बात करे तो साल 1994 में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद से अपने रास्ते अलग कर लिए थे। नीतीश कुमार ने जॉर्ज फ़र्नान्डिस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई। साल 1995 के विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरे, लेकिन लालू से ऐसी पटखनी पाई की राजनीति के रास्ते किसी रेगिस्तान में भटकते दिखे। तब नीतीश को किसी सहारे की तलाश थी। साल 1996 का यह वो दौर था जब नीतीश की राजनीति अपनी नींव में खाद पानी की तलाश में थी। तभी वह सूबे की राजनीति में हाशिए पर चल रही बीजेपी का साथ हो लिए व दोनों का गठबंधन हुआ। यह गठबंधन अगले 17 सालों तक चला।
   इसके बाद समता पार्टी अपने सफर के दौरान साल 2003 में जनता दल यूनाटेड (जेडीयू) बन गई, लेकिन बीजेपी से गठबंधन मज़बूती के साथ जारी रहा। दोनों पार्टी ने 2005 से 2013 तक सूबे में गठबंधन सरकार चलाई, जिसका नेतृत्व नीतीश कुमार के जिम्मे रहा और सुशील मोदी उप मुख्यमंत्री रहे। सूत्रों की माने तो साल 2013 में गठबंधन धर्म निभाने में नीतीश के लिए जो सबसे ज्यादा मुश्किल घड़ी आई उसकी वजह नरेंद्र मोदी माने जाते थे। जब बीजेपी ने मोदी को पीएम का कैंडिडेट घोषित किया तो सांप्रदायिकता के सवाल पर नीतीश ने बीजेपी से 17 साल पुराना नाता तोड़ लिया, लेकिन उनकी अल्पमत सरकार चलती रही।
    साल 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा। नीतीश ने चुनाव नतीजों के दूसरे दिन मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। जीतन राम मांझी को सीएम की कमान सौंपी गई और 2015 के विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी गई। साल 2015 नीतीश के लिए बिहार में भी मोदी टक्कर लेना मुश्किल काम था। उधर लालू प्रसाद को भी 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त मिली थी। पिछले 18 सालों तक एक-दूसरे के खिलाफ राजनीति करने वाले लालू-नीतीश ने सांप्रदायिक ताकतों के हराने के नाम पर गठजोड़ का एलान किया। विधानसभा चुनाव हुए व गठबंधन को भारी जीत मिली। नीतीश सीएम व लालू के बेटे डिप्टी सीएम बने।
   फिर साल 2017 तक आते आते नीतीश-लालू के 18 सालों की दुश्मनी का असर बिहार के गठबंधन सरकार के बीते 20 महीने के सफर पर साफ दिख रहा था। आखिर 26 जुलाई को गठबंधन अपने स्वभाविक नतीजे पर पहुंच गई व 15 घंटे के भीतर ही नीतीश दोबारा सत्ता में हैं।
दरअसल नीतीश कुमार प्रधानमंत्री व आरआरएस के खिलाफ भी बोलते रहे हैं। गठबंधन से अलग होने के बाद नीतीश कुमार ने राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ पर शब्दों से हमला किया था। नीतीश कुमार ने कहा था कि आरएसएस का स्‍वतंत्रता की लड़ाई में कोई योगदान नहीं रहा है। उन्‍होंने कहा था कि नए भारत के नए पिता की बात हो रही है, लेकिन उन्‍होंने देश के लिए क्‍या किया है ? नीतीश कुमार ने कहा था कि आरएसएस का आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं रहा है।
     आजकल चारों तरफ मॉडर्न इंडिया की बात हो रही है। मैं पूछना चाहता हूं कि उन्होंने किया ही क्या है ? देश को आगे ले जाने के लिए उन्होंने कुछ किया है ? वे नई टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग कर रहे हैं। नीतीश ने कहा थी कि क्‍या देश आगे बढ़ा है ? कौन सा काम हुआ है ? नीतीश कुमार ने कहा था, सिर्फ प्रचार हुआ है। इसके बाद वह कांग्रेस मीत गठबंधन से जुड़ गए थे। आज इस गठबंधन का एक बार फिर से मोह भंग हुआ, जिसके चलते नीतीश कुमार ने फिर से गठबंधन को अलविदा कह कर भाजपा के साथ नाता जोड़ लिया है। नीतीश कुमार व भाजपा के गठबंधन से इंडिया गठबंधन को कितना नुक्सान होता है, वह तो लोकसभा के चुनावों के बाद ही पता चलेगा, लेकिन भाजपा की एनडीए सरकार ने नीतीश को अपने पाले में करके इंडिया गठबंधन को जोर का झटका धीरे से दिया है।

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