आखिर क्यों हो रहा है यूनिफॉर्म सिविल कोड का देश में विरोध ? जानें वजह..

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यूसीसी के प्राइवेट मेंबर बिल के पक्ष में पड़े थे 63 व विरोध में 23 वोट..जानिए यूनिफॉर्म सिविल कोड से लेकर इससे होने वाले बदलाव के बारे में…

टाकिंग पंजाब  
नई दिल्ली। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 जून यानि बीते मंगलवार को यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र किया। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि एक घर में दो कानून नहीं चल सकते हैं। ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा। उन्होने कहा कि इस मुद्द पर मुस्लिमों को गुमराह किया जा रहा है। पीएम मोदी के इस बयान पर सियासी घमासान छिड़ गया है।  इस बयान को कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर दिया गया बयान बताया है। एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी से लेकर कई इस्लामी इदारों ने यूसीसी पर एतराज जताया है। इन सबके बीच अहम सवाल यह है कि आखिर यूनिफॉर्म सिविल कोड के विरोध का कारण क्या है ?
     दरअसल मुस्लिम समुदाय यूसीसी को धार्मिक मामलों में दखल के तौर पर देखते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तहत शरीयत के आधार पर मुस्लिमों के लिए कानून तय होते हैं। तीन तलाक कानून बनाने पर बरेलवी मसलक के उलमा ने नाखुशी जाहिर करते हुए कहा था कि मजहबी मामलत में दुनियावी दखलदांजी अच्छी नहीं होती है। दुनियावी कानून में सुधार होते रहते हैं पर शरीयत में तब्दीली मुमकिन नहीं। यूसीसी का विरोध करने वाले मुस्लिम धर्मगुरुओं का मानना है कि यूसीसी की वजह से मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का वजूद खतरे में पड़ जाएगा, जो सीधे तौर पर मुस्लिमों के अधिकारों का हनन होगा। मुस्लिम धर्मगुरुओं का कहना है कि शरीयत में महिलाओं को संरक्षण मिला हुआ है। इसके लिए अलग से किसी कानून को बनाए जाने की जरूरत नहीं है। मुस्लिम धर्मगुरुओं को यूनिफॉर्म सिविल कोड के जरिए मुसलमानों पर हिंदू रीति-रिवाज थोपने की कोशिश किए जाने का इल्जाम है। इनका मानना है कि यूसीसी लागू होने के बाद हर मजहब पर हिंदू रीति-रिवाजों को थोपने की कोशिश की जाएगी।
   यूसीसी के बाद भारत में क्या होंगे बड़े बदलाव
   भारत में अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ा दी जाएगी। इससे वे कम से कम ग्रेजुएट तक की पढ़ाई पूरी कर सकेंगी। वहीं, गांव स्‍तर तक शादी के पंजीकरण की सुविधा पहुंचाई जाएगी। अगर किसी की शादी पंजीकृत नहीं होगी तो दंपति को सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा। पति व पत्‍नी को तलाक के समान अधिकार मिलेंगे। एक से ज्‍यादा शादी करने पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी। नौकरीपेशा बेटे की मौत होने पर पत्‍नी को मिले मुआवजे में माता-पिता के भरण पोषण की जिम्‍मेदारी भी शामिल होगी। उत्‍तराधिकार में बेटा और बेटी को बराबर का हक होगा। पत्‍नी की मौत के बाद उसके अकेले माता-पिता की देखभाल की जिम्‍मेदारी पति की होगी। वहीं, मुस्लिम महिलाओं को बच्‍चे गोद लेने का अधिकार मिल जाएगा। उन्‍हें हलाला और इद्दत से पूरी तरह से छुटकारा मिल जाएगा। लिव-इन रिलेशन में रहने वाले सभी लोगों को डिक्लेरेशन देना पड़ेगा। पति व पत्‍नी में अनबन होने पर उनके बच्‍चे की कस्‍टडी दादा-दादी या नाना-नानी में से किसी को दी जाएगी। बच्‍चे के अनाथ होने पर अभिभावक बनने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी।बीजेपी के चुनावी एजेंडा से बाहर नहीं है यूसीसी
  राम मंदिर और आर्टिकल 370 की तरह ही यूनिफॉर्म सिविल कोड भी हमेशा से ही बीजेपी के चुनावी एजेंडा में शामिल रहा है। साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी ने खुलकर अपने घोषणापत्र में इसका जिक्र किया। साल 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही बीजेपी नेताओं ने यूसीसी को लेकर लगातार बयान दिए हैं। यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर सबसे बड़ा कदम 9 दिसंबर 2022 को उठाया गया। इसको लेकर हुई वोटिंग में कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस के कई सांसदों ने वोट नहीं डाला था। इस वजह से यूसीसी के प्राइवेट मेंबर बिल के पक्ष में 63 और विरोध में 23 वोट पड़े थे, जिसके साथ ये प्रस्ताव पारित हो गया। इसके बाद से ही बीजेपी शासित कई राज्यों में यूसीसी को लागू करने को लेकर जोर-आजमाइश तेज हो गई, हालांकि, अल्पसंख्यक समुदाय इसका विरोध कर रहे हैं। बता दें कि भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है।
  यूनिफॉर्म सिविल कोड या यूसीसी आखिर है क्‍या  ?
    यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है कि हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम। दूसरे शब्‍दों में कहें तो समान नागरिक संहिता का मतलब है कि पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक ही होंगे। संविधान के अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है। अनुच्छेद-44 संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है। इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है। समान नागरिक संहिता के मामले में गोवा अपवाद है। गोवा में यूसीसी पहले से ही लागू है। बता दें कि संविधान में गोवा को विशेष राज्‍य का दर्जा दिया गया है। वहीं, गोवा को पुर्तगाली सिविल कोड लागू करने का अधिकार भी मिला हुआ है। राज्‍य में सभी धर्म और जातियों के लिए फैमिली लॉ लागू है। इसके मुताबिक, सभी धर्म, जाति, संप्रदाय और वर्ग से जुड़े लोगों के लिए शादी, तलाक, उत्‍तराधिकार के कानून समान हैं।
  किस राज्‍य में लागू है यूनिफॉर्म सिविल कोड
    गोवा में कोई भी ट्रिपल तलाक नहीं दे सकता है। रजिस्‍ट्रेशन कराए बिना शादी कानूनी तौर पर मान्‍य नहीं होगी। संपत्ति पर पति-पत्‍नी का समान अधिकार है.लिए। हालांकि, यहां भी एक अपवाद है। दुनिया के कई देशों में समान नागरिक संहिता लागू है. इनमें हमारे पड़ोसी देश पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश भी शामिल हैं। इन दोनों देशों में सभी धर्म व संप्रदाय के लोगों पर शरिया पर आधारित एक समान कानून लागू होता है। इनके अलावा इजरायल, जापान, फ्रांस और रूस में भी समान नागरिक संहिता लागू है। हालांकि, कुछ मामलों के लिए समान दीवानी या आपराधिक कानून भी लागू हैं। यूरोपीय देशों और अमेरिका में धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू होता है। दुनिया के ज्‍यादातर इस्लामिक देशों में शरिया पर आधारित एक समान कानून है, जो वहां रहने वाले सभी धर्म के लोगों को समान रूप से लागू होता है।

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