सांसदों के व्यवहार से रूठे लोकसभा के सभापति ओम बिड़ला ने किया संसद से किनारा… 2 दिन से नहीं आए संसद में

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नितिन गडकरी, अधीर रंजन चौधरी, सुप्रिया सुले, फारुख अब्दुल्ला व अन्य ने सभापति ओम बिरला से मुलाकात कर की सदन की कार्यवाही में शामिल होने की अपील
टाकिंग पंजाब

नईं दिल्ली। संसद के मानसून सत्र का गुरुवार यानी 3 अगस्त को 11वां दिन है, लेकिन हैरानी की बात यह रही कि ओम बिड़ला गुरुवार सुबह सदन नहीं पहुंचे। सूत्रों की माने तो वह नाराज हैं। स्पीकर 2 अगस्त को भी सदन में नहीं आए थे। जैसे ही 11 बजे कार्यवाही शुरू हुई तो स्पीकर के आसन पर उनकी जगह राजेंद्र अग्रवाल ने सदन की अध्यक्षता की। हालांकि कुछ समय बाद विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने अग्रवाल से बिड़ला के बारे में बात करते हुए कहा कि वह हमारे संरक्षक, हम उनके मुरीद हैं, हमारी अपील है कि वह वापस आ जाएं।     इसके साथ ही केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी, एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले, एनके प्रेमचंद्रन, बसपा के रितेश पांडे, भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल, टीएमसी सांसद सौगत राय, एनसीपी सांसद फारुख अब्दुल्ला और डीएमके सांसद कनिमोझी ने लोकसभा सभापति ओम बिरला से मुलाकात की। सांसदों ने लोकसभा स्पीकर से सदन की कार्यवाही में शामिल होने की अपील की। हालाकि दोपहर 2 बजे लोकसभा में दिल्ली अध्यादेश विधेयक पर चर्चा हुई। इस दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि विपक्षी दलों को गठबंधन का नहीं, दिल्ली का सोचना चाहिए। एक बात तय है कि चाहे कितना भी अलायंस कर लें, सरकार तो नरेंद्र मोदी की ही आ रही है। गृह मंत्री के बोलने के बाद कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि शाह के मुंह से नेहरू की तारीफ अच्छी लगी।      शाह ने कहा कि मैंने तारीफ नहीं की, आपको लगता है तो मान लीजिए। इस दौरान गृह मंत्री शाह ने कहा कि दिल्ली ना तो पूरी तरह राज्य है और ना ही पूरी तरह संघ शासित प्रदेश है। संसद को आर्टिकल 239 एए के तहत दिल्ली के मु्द्दे पर संसद में कानून बनाने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि पं नेहरू, सरदार पटेल, राजाजी, राजेंद्र प्रसाद और डॉ. अंबेडकर ने इस बात का विरोध किया था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए। नेहरू ने कहा था कि दिल्ली में तीन चौथाई संपत्ति केंद्र सरकार की है, इसलिए इसे केंद्र के अधीन रखा जाए। उन्होंने कहा कि 2015 में दिल्ली में जिस दल की सरकार आई, उसका मकसद सेवा नहीं, झगड़ा करना था। कई पार्टियों का मुख्यमंत्री रहे, कई पार्टियों की मिली जुली सरकार रही, किसी पार्टी की शुद्ध रूप से सरकार रही, लेकिन सरकार चलाने में किसी को कोई दिक्कत नहीं आई।       समस्या ट्रांसफर-पोस्टिंग के अधिकार की नहीं थी, विजिलेंस को कंट्रोल में लेकर जो बंगला बना दिया है, उसका सत्य छिपाना है, जो भ्रष्टाचार हो रही है, इसका सत्य छिपाना है। मेरी अपील है कि विपक्षी दलों को दिल्ली का सोचना चाहिए, गठबंधन का नहीं। अलायंस के बावजूद केंद्र में बहुमत से नरेंद्र मोदी की सरकार बन रही है। उधर दूसरी तरफ मल्लिकार्जुन खड़गे ने राज्यसभा स्पीकर जगदीप धनखड़ से पूछा कि वे मणिपुर मुद्दे पर चर्चा की मांग को लेकर PM का बचाव क्यों कर रहे हैं। इसके जवाब में धनखड़ ने कहा, ‘मुझे PM का बचाव करने की जरूरत नहीं है। मैं यहां किसी व्यक्ति का बचाव करने नहीं बैठा हूं। मैं यहां संविधान और आपके अधिकारों का बचाव करने बैठा हूं। आपकी तरफ से ऐसी बात सराहनीय नहीं है।

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