1977 से लेकर अब तक हुए 12 चुनावों में मतदान प्रतिशत 55 प्रतिशत से लेकर 67 प्रतिशत के आसपास ही है रहा है.. साल 2019 के चुनाव में देश में सबसे अधिक गिरे थे वोट
टाकिंग पंजाब
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 के लिए शुक्रवार को पहले चरण का मतदान संपन्न हो गया। पहले चरण के लिए देश की 21 राज्यों की 102 सीटों पर लगभग 63.7 प्रतिशत वोट डाले गए हैं। पिछले 47 सालों में हुए 12 लोकसभा चुनावों के आंकड़ों को देखने के बाद एक बात जो सामने आती है वो यह है कि चुनाव आयोग के तमाम प्रयासों के बाद भी देश के आम चुनावों में मतदान का आंकड़ा 60 से 70 प्रतिशत के आसपास ही रहा है। पिछले 12 चुनावों में सबसे कम मतदान 1991 में देखने को मिला जब 55.9 प्रतिशत मतदान हुए थे वहीं सबसे अधिक मतदान 2019 में हुआ था जब 67.4 प्रतिशत वोट पड़े थे। आइए जानते हैं कि कम मतदान और अधिक मतदान का चुनाव परिणाम पर क्या असर रहा है। कुल 12 में से 7 चुनावों में मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी देखने को मिली। इन चुनावों के परिणाम पर नजर देने के बाद पता चलता है कि 7 में से 4 बार सरकार बदली तो वहीं 3 चुनावों में सरकार नहीं बदली। अर्थात सत्ताधारी दल को वोट परसेंट के बढ़ने का फायदा भी हो सकता है और नुकसान भी हो सकता है। साल 1984, 2009 और 2019 के चुनावों में वोट परसेंट के बढ़ने का लाभ सत्ताधारी दल को हुआ और उसकी बड़ी बहुमत के साथ वापसी हुई। इसके साथ ही 4 चुनाव ऐसे रहे हैं जब मतदान में बढ़ोतरी हुई व केंद्र की सरकार बदल गयी। साल 1977, 1996, 1998 और 2014 के चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ ही सत्ता में भी परिवर्तन देखने को मिला। मतदान प्रतिशत में गिरावट का क्या रहा है असर ?
दरअसल 12 में से 5 चुनावों में मतदान प्रतिशत में गिरावट देखने को मिली है। जब-जब मतदान प्रतिशत में कमी हुई है, 4 बार सरकार बदल गयी है जबकि एक बार सत्ताधारी दल की वापसी हुई है। साल 1980 के चुनाव में मतदान प्रतिशत में गिरावट हुई और जनता पार्टी की सरकार सत्ता से हट गयी। जनता पार्टी की जगह कांग्रेस की सरकार बन गयी तो वहीं 1989 में एक बार फिर मत प्रतिशत में गिरावट दर्ज की गयी और कांग्रेस की सरकार चली गयी तो विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी। साल 1991 में एक बार फिर मतदान में गिरावट हुई और केंद्र में कांग्रेस की वापसी हो गयी। साल 1999 में मतदान में गिरावट हुई लेकिन सत्ता में परिवर्तन नहीं हुआ तो वहीं 2004 में एक बार फिर मतदान में गिरावट का फायदा विपक्षी दलों को मिला। तो हर बार वोटिंग कम या ज्यादा होने के चलते भी पार्टीयों के वोट शेयर में उतार चड़ाव आम तौर पर देखने को मिला। पिछले 12 चुनावों में से 1977, 1984,1989, 1998,1999,2014 व 2019 के चुनावों में 60 प्रतिशत से अधिक वोट पड़े हैं। 60 प्रतिशत से अधिक मतदान होने पर किसे मिली जीत ?
पिछले 12 चुनावों में से 1977, 1984,1989, 1998,1999,2014 व 2019 के चुनावों में 60 प्रतिशत से अधिक वोट पड़े हैं। इन चुनावों के परिणाम को अगर देखें तो 1977, 1989, 1998 और 2014 के चुनावों में सत्ता में परिवर्तन देखने को मिला। वहीं तीन चुनाव 1989, 1999 और 2019 के चुनावों में 60 प्रतिशत से अधिक वोटिंग के बाद भी सत्ताधारी दलों की वापसी हुई। देखा जाए तो यह आंकड़े भी चौकाने वाले हैं, जिससे वोटर की नबज का अंदाजा नहीं लागाया जा पा रहा है। इन आंकड़ों को देखने के बाद यह पता चलता है कि वोटिंग ज्यादा या कम होने से यह क्यास नहीं लगाए जा सकते कि सरकार की सत्ता में वापसी होगी या फिर सरकार इस बार जाऐगी। जनता का मूढभापने में अभी तक के सारे यंत्र नाकाम रहे हैं व जनता जब चाहे कम या ज्यादा वोच करके सत्ता में ला भी सकती है व सत्ता की कुर्सी से गिरा भी सकती है। इससे यह लग रहा है कि वोटिंग कम या ज्यादा होना किसी भी सरकार के बने रहने या गिर जाने का आधार नहीं माना जा सकता।