क्या पुराने पार्टी वॉलंटियरों की अनदेखी करना बना आप को मिली कम सीटों का कारण

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पार्टी फाऊंडेशन से ही साथ चल रहे पुराने वॉलंटियर को मिला सिर्फ भरोसा … पार्षद की टिकट के भी नहीं समझा लायक

टाकिंग पंजाब

जालंधर। नगर निगम चुनावों के बाद पूर्ण बहुमत से दूर रही आम आदमी पार्टी ने जोड़-तोड़ करके अपना मेयर पद तो पक्का कर लिया, लेकिन इस मेयर पद को हासिल करने के लिए जो जद्दोजहद पार्टी को करनी पड़ी है, शायद वह नहीं करनी पड़ती अगर पार्टी ने टिकटों का वितरण सही किया होता। जालंधर के साथ साथ पंजाब की राजनीति में चर्चा है कि पार्टी ने अपने पुराने साथियों को टिकट न देकर जो नए लोगों को टिकट दी है, वही एक कारण रहा है कि पार्टी जालंधर में ज्यादा सीटें जीत नहीं पाई है। पार्टी का पुराना कैडर जो कि इस बात की उम्मीद लगाए बैठा था कि पार्टी इस निगम चुनाव में उसको टिकट देकर उसकी वफा का सिला देगी, ऐसा नहीं हो पाया है।   इस मामले में हम पार्टी के एक पुराने नेता डॉ. राजेश बब्बर की बात करें तो डॉ. राजेश बब्बर ने 2013 में आम आदमी पार्टी ज्वाइन की थी। इसके बाद उन्होंने मध्य प्रदेश चुनावों में आप टीम के साथ सभी अभियानों में भाग लिया। उन्होंने कहा कि पार्टी ने मुझे केंद्रीय विधानसभा क्षेत्र के सर्कल-7 के प्रभारी की जिम्मेदारी दी। ‘पंजाब जोडो’ सदस्यता अभियान का वह हिस्सा रहें हैं। आप टीम के साथ मिलकर अलग-अलग स्थानों पर निःशुल्क चिकित्सा शिविर आयोजित किए। इसके अलावा कितने ही शिविरों में उन्होंने पार्टी के साथ बढ-चढ कर हिस्सा लिया। पिछले 10 वर्षों से पार्टी के एक ईमानदार सिपाही बनकर छोटी- बड़ी हर सभा, रैली व नुक्कड़ बैठकें आयोजित कीं।  इसके बाद उन्हें लुधियाना में प्रवक्ता के प्रशिक्षण कार्यक्रम व कैंट हल्के में काम करने की जिम्मेदारी दी गई। विधानसभा चुनावों में जालंधर सेंट्रल, जालंधर नॉर्थ व जालंधर पश्चिम उन्होंने कई परिवारों को पार्टी के साथ जोड़ा, लेकिन उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी देना तो दूर पार्टी ने निगम चुनाव में टिकट तक देना वाजिब नहीं समझा। डॉ. राजेश बब्बर का कहना था​ कि वह पार्टी के साथ हर कदम पर साथ चलें हैं, लेकिन उन्हें हर बार कुछ न कुछ पद देने का दिलासा ही मिला है। उन्होंने कहा कि पिछली 10 साल की मेहनत के बाद भी उन्हें पार्टी ने एक पार्षद की टिकट के लायक भी नहीं समझा, जबकि पिछले 1-2 सालों से पार्टी से जुड़े लोगों को टिकट बांट दिए गए।  उनकी पत्नी सेंट्रल हल्के में पार्टी की को-आर्डीनेटर थी व उन्होंने विधानसभा चुनाव में मेहनत की थी, जो कि कम से कम पार्षद की टिकट के लायक तो थी ही। उन्हें तो बस यह ही कहा गया कि आपकी चेयरमैनी पक्की हो गई है, आपका यह पद पक्का हो गया है, लेकिन अभी तक मिला कुछ भी नहीं। इस निगम चुनाव में तो उन्होंने इलाके में अपना प्रचार भी शुरू कर दिया था। उन्हें कहा गया कि आप तैयारी करें, मगर पार्टी ने कोई पद क्या देना था कि पार्टी ने उन्हें पार्षद की टिकट तक नहीं दी। उन्होंने चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर रखी थी व लोगों से मिलना भी शुरू कर दिया था, लेकिन उनको पार्टी की तरफ से उनकी की गई अनदेखी ने उन्हें काफी निराश किया है।    डॉ. राजेश बब्बर जैसा एक पार्टी वॉलंटियर नहीं है जो कि पार्टी की अनदेखी का शिकार है, ऐसे कई पुराने नेता थे जो कि कुर्ता-पायजामा सिला कर बैठे थे कि बस उनकी टिकट तो पक्की है, लेकिन ऐन मौके पर इन नेताओं के कुर्ता-पॉयजामा इस्त्री किए हुए ही रह गए। बाहरी पार्टीयों से आए कुछ नेताओं को टिकट दी गई व उनमें से कईं जीते भी, लेकिन जो हारे क्या वह भी जीत सकते थे ? ऐसे ही कईं पुराने पार्टी वॉलंटियर का कहना है कि अगर टिकट वितरण सही हुआ होता तो शायद आप की सीटों में इजाफा हो सकता था। फिलहाल पार्टी को इतना सकून तो है कि वह जालंधर में अपना मेयर बनाने में कामयाब होने जा रही है।

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